Tuesday, May 26, 2009

पापा की दवाई मां की रोटी

पापा की दवाई मां की रोटी
मां की शिकायत थी कि जवान बेटी बद्तमीज हो गई है। तपाक-तपाक जबाव देती है। मां ने बहुत मुश्किलों से उसे पढ़ाया जो था। सोचा तो था कि इंजीनयिरंग करवाएगी लेकिन दो जून की रोटी मुश्किल से जुगाड़ने वाली मां की हिम्मत जबाव दे गई। बेटी को किसी तरह एमए ही करवा सकी। हमेशा उतरन पहनने वाली बेटी अब 2000 रुपए कमाने लगी। जिससे बीमार बाप की दवाई और घर का राशन आता है। मां कहती है क्या-क्या सोचा था इसे पढ़ाते वक्त..पता होता कि यह मुझे ही चार लोगों में पागल कहेगी तो इसे कभी न पढ़ाती। बेटी कहती है मां तेरा दिमाग पागल है..मुझे टेंशन मत दिया कर..तू है क्या..मेरे सिर पर घर चलता है।
थकी मांदी प्यासी बेटी पैर पर जख्म पर मरहम लगाती रहती और मां को गालियां निकालती रहती । रोज दो किमी पैदल जाती है नौकरी पर। घटिया चमड़े की जूती पहनने से एड़ियों पर जख्म हो गए हैं। मां का हौसला जबाव दे गया। उसने घर छोड़ दिया। भाई के चली गई। बेटी सोच रही थी कि कैसे कर लूं शादी..शादी कर लूंगी तो पापा की दवाई कहां से आएगी..तुझे रोटी कौन खिलाएगा..।

Monday, September 8, 2008

विधवा का मंगलसूत्र

बीते आठ सालों से लगातार सफऱ कर रही हूं। कुछ अनुभवों को बांटना चाहूंगी...जो मुझे हुए... इनमें से कुछ अपने आसपास की या फिर अनजान राहगीरों के हैं... कुछ महिलाएं, लड़कियां मुझे बस, ट्रेन, रेलवे स्टेशन या फुटपाथ पर मिलीं... आधी रात के समय बस स्टैंड पर बीड़ी सुलगाती या फिर रिपोर्टिंग के दौरान डिस्कोथेक में थिरकती हुईं। कुछ की बातें दिल दहला गईं तो कुछ दिल बहला गईं। दिलचस्प..यादगार..रूला देने वाली और कुछ जोश दिला देने वाली...।


कुछ महीने पहले मलेशिया घूमने गई थी। अलसुबह हम लोग कुआलालंपुर हवाई अड्डे पहुंच गए। एयरपोर्ट पर फ्रैश होने के बाद हमें सीधा जैंटिंग के लिए रवाना होना था। दो दिन का स्टे था वहां। वहां मालूम हुआ कि शुभांगी मेरी रूममेट है। अधेड़ उम्र की महिला,जिसका फैशन उसे नवधनाढ्य वाली महिलाओं जैसा फूहड़ लुक दे रहा था। वह पढ़ी-लिखी नहीं थी। मन में सोचा पता नहीं इससे पटेगी या नहीं...लेकिन कर कुछ नहीं सकती थी। होटल पहुंचने पर हमने कमरे में सामान पटका और धुंध के धुंए में सिमटे जैंटिंग को घूमने निकल गए।

दोनों एक-दूसरे के साथ ही रहे। अपनी इच्छा से कम बल्कि पहाड़ों में बसे जैंटिंग की तिलस्मी और चकाचौंध भरी दुनिया में खो जाने के डर से ज्यादा। बीच-बीच में कुछ बात भी हो जाती। वह हर दुकान पर खड़ी हो जाती... लेकिन मेरा मन था कि मैं बादलों की गोद में बैठे जैंटिंग की कड़ाके की ठंड का मजा लेते हुए कॉफी पिऊं। लेकिन गाइड जोजो ने कहा था कि सब लोग एकसाथ ही रहें। हमने कुछ ड्राइव्स ली..एक हॉरर शो देखा..ठंड काफी हो चुकी थी। शुभांगी ने पूछा ऐ कसीनो चलती क्या... सुना था कि जैंटिंग आकर यहां का कसीनो नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। मंजूर...हम दोनों ने टिकट खरीदा और पहुंच गए कसीनो की जुआरियों की दुनिया में। मैं तो अभी वहां की दुनिया में पलक भी न झपक पाई थी कि देखा शुभांगी बाजी खेलने बैठ गई थी...और हार भी गई। फिर कहने लगी मेरे को आता थोड़ा ऐ..न में जीतने के वास्ते नहीं खेली...इसलिए खेली कि याद रहेगा न कि मलेशिया जाकर कसीनो गई थी। रात को सभी लोग बफे में इकट्ठा हुए। शुभांगी ने सभी खाने की चीजों का जायजा लिया...अपनी प्लेट भरी और फोटो खिंचवाई। वह हर जगह फोटो जरुर खिंचवाती थी।

तीसरे दिन हम लोग कुआलालंपुर लौट आए। शाम को ही हमें सनवे लेगून वाटर पार्क जाना था। शुभांगी पानी में नहीं उतरी। काफी देर पानी में मस्ती करने के बाद मुझे चाय और धूप की जरूरत थी। हम शोर-शराबे से दूर कॉफी पीने लगे धूप में। मैंने पूछा शुभांगी तुम्हारा मंगलसूत्र बहुत सुंदर है। तुम्हारे पति ने दिया? क्या करते हैं वो?...वह कहने लगी ऐ मै तेरे को बताना तो नहीं था पन तू मेरी दोस्त है, तो तेरे से झूठ नी बोलनेका... मैं विधवा हूं..। इसके बाद वह फूट-फूट कर रोने लगी। बच्चों की तरह। उसने बताया कि पति की मौत के बाद सभी ने उससे नाता तोड़ लिया। पढ़ी-लिखी नही थी...इसलिए ब्यूटीपार्लर का काम सीखा और संघर्ष कर बच्चों को पाला।

अब बेटा कमाने लगा है। उसने शुभांगी को पूछे बिना उसकी मलेशिया की बुकिंग करवा दी थी। वह बताती है मुझे मालूम लगा तो मैंने उसे डांट लगाई कि लोग क्या कहेंगे...विधवा को मजे सूझ रहे हैं...जवानी फूटी है...सो मैं नहीं जाउंगी। लेकिन शाम को बेटा एक मंगलसूत्र खरीद लाया और कहने लगा मम्मी तुझे जाना तो जरूर है मेरी खातिर। लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं यह मंगलसूत्र ले आया हूं...वहां जो पसंद हो वो खरीदना और मुझे हर जगह का फोटो जरूर दिखाना...रोज फोन करना...। शुभांगी अब मुझे वो अधेड़ उम्र की महिला नहीं एक बच्ची लग रही थी। जो कभी बड़ी नहीं हो पाई..।